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मंगलवार, 8 अक्तूबर 2019

Giloy के 6 इंच के तने को लेकर कुचल ले उसमे 4 -5 पत्तियां तुलसी की मिला ले इसको एक गिलास पानी में मिला कर उबालकर इसका काढा बनाकर पीजिये। और इस काढ़े में तीन चम्मच एलोवेरा का गूदा मिला कर नियमित रूप से सेवन करते रहने से जिन्दगी भर कोई भी बीमारी नहीं आती। और इसमें पपीता के 3-4 ताज़ा पत्तो का रस मिला कर दिन में तीन चार बार (हर तीन चार घंटे के बाद) लेने से रोगी को प्लेटलेट की मात्रा में तेजी से इजाफा होता है प्लेटलेट बढ़ाने का इस से बढ़िया कोई इलाज नहीं है यह चिकन गुनियां डेंगू स्वायन फ्लू और बर्ड फ्लू में रामबाण होता है।
गैस, जोडों का दर्द ,शरीर का टूटना, असमय बुढापा वात असंतुलित होने का लक्षण हैं। गिलोय का एक चम्मच चूर्ण को घी के साथ लेने से वात संतुलित होता है ।
गिलोय और अश्वगंधा को दूध में पकाकर नियमित खिलाने से बाँझपन से मुक्ति मिलती हैं।
क्षय (टी .बी .) रोग में गिलोय सत्व, इलायची तथा वंशलोचन को शहद के साथ लेने से लाभ होता है।
गिलोय और पुनर्नवा का काढ़ा बना कर सेवन करने से कुछ दिनों में मिर्गी रोग में फायदा दिखाई देगा।
दस्त पेचिश और आंव में इस की ताज़ा डंडी को थोड़ा कूट कर इसको थोड़े से पानी के साथ पिए। आपको बहुत आराम आएगा।
एक चम्मच गिलोय का चूर्ण खाण्ड या गुड के साथ खाने से पित्त की बिमारियों में सुधार आता है और कब्ज दूर होती है।
प्रतिदिन सुबह-शाम गिलोय का रस घी में मिलाकर या शहद गुड़ या मिश्री के साथ गिलोय का रस मिलकर सेवन करने से शरीर में खून की कमी दूर होती है।
हिचकी आने पर गिलोय के काढ़े में मिश्री मिला कर देने से हिचकी सही होती हैं।
फटी त्वचा के लिए गिलोय का तेल दूध में मिलाकर गर्म करके ठंडा करें। इस तेल को फटी त्वचा पर लगाए वातरक्त दोष दूर होकर त्वचा कोमल और साफ होती है।
इसका नियमित प्रयोग सभी प्रकार के बुखार, फ्लू, पेट कृमि, खून की कमी, निम्न रक्तचाप, दिल की कमजोरी, टीबी, मूत्र रोग, एलर्जी, पेट के रोग, मधुमेह, चर्म रोग आदि अनेक बीमारियों से बचाता है।
गिलोय भूख भी बढ़ाती है। एक बार में गिलोय की लगभग 20 ग्राम मात्रा ली जा सकती है।
मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयो पर गिलोय के फलों को पीसकर लगाये मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयां दूर हो जाती है।
मट्ठे के साथ गिलोय का 1 चम्मच चूर्ण सुबह शाम लेने से बवासीर में लाभ होता है।
गिलोय का रास शहद के साथ मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से पेट का दर्द ठीक होता है।
गिलोय को पानी में घिसकर और गुनगुना करके दोनों कानो में दिन में 2 बार डालने से कान का मैल निकल जाता है। और गिलोय के पत्तों के रस को गुनगुना करके इस रस को कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है।
गिलोय और पुनर्नवा मूल को कूट कर इसका रस निकाल लीजिये इस में शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है। यकृत(LIVER) में अगरSGOT या SGPTABNORMAL हैं या BILIRUBIN बढ़ा हैं तो भी इस से ये ठीक होता हैं।
प्रमेह,प्रदर, कमज़ोरी व् धातु क्षीणता होने पर इसको कूट कर रात में पानी मिला कर रख दीजिये और सुबह इसको निचोड़ कर इस पानी को पी लीजिये, ये थोड़ा कड़वा होगा, कड़वापन दूर करने के लिए आप इसमें मिश्री या शहद मिला कर इसको पीजिये। इसको पीने से आपके चेहरे से झुर्रिया व् झाइयां खत्म होंगी और चेहरे पर कांति आएगी। मधुमेह के रोगी इसमें शहद या मिश्री ना मिलाये।
ये बुढ़ापे को रोकने वाली, जवानी को बना कर रखने वाली दिव्या औषिधि हैं। अगर आपको किसी भी प्रकार का दाद, खाज, खुजली, एक्ज़िमा, सीरोसिस, चाहे लिवर के अंदर ट्यूमर, फाइब्रोसिस में भी ये लाभकारी हैं।
मधुमेह के रोगी अगर सुबह इसकी ६ इंच की ताज़ा डंडी को चबा चबा कर चूसे तो कुछ दिनों में उनका मधुमेह का रोग सही हो जाता हैं।
गिलोय में शरीर में शुगर और लिपिड के स्तर को कम करने का खास गुण होता है। इसके इस गुण के कारण यह डायबीटिज टाइप 2 के उपचार में बहुत कारगर है।
गिलोय रसायन यानी ताजगी लाने वाले तत्व के रुप में कार्य करता है। इससे इम्यूनिटी सिस्टम में सुधार आता है और शरीर में अतिआवश्यक सफेद सेल्स की कार्य करने की क्षमता बढ़ती है। यह शरीर के भीतर सफाई करके लीवर और किडनी के कार्य को सुचारु बनाता है। यह शरीर को बैक्टिरिया जनित रोगों से सुरक्षित रखता है। इसका उपयोग सेक्स संबंधी रोगों के इलाज में भी किया जाता है।
वैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार इसमें एल्केलाइड गिलोइन नामक कड़वा ग्लूकोसाइड, वसा, अल्कोहल, ग्लिस्टरोल, अम्ल व उडऩशील तेल होते हैं। इसकी पत्तियों में कैल्शियम, प्रोटीन, फॉस्फोरस और तने में स्टार्च पाया जाता है। वायरसों की दुश्मन गिलोय रोग संक्रमण रोकने में सक्षम होती है। यह एक श्रेष्ठ एंटीबयोटिक है।
टाइफायड, मलेरिया, डेंगू, एलीफेंटिएसिस, विषम ज्वर, उल्टी, बेहोशी, कफ, पीलिया, तिल्ली बढऩा, सिफलिस, एलर्जी सहित अन्य त्वचा विकार, झाइयां, झुर्रियां, कुष्ठ आदि में गिलोय का सेवन आश्चर्यजनक परिणाम देता है। यह शरीर में इंसुलिन बड़ा देता है ।

गुरुवार, 25 जुलाई 2019

*सोरायसिस :-एक जटिल दुःसाध्य चर्म रोग -
सोरायसिस चमड़ी पर होने वाली एक ऐसी बीमारी है जिसमें त्वचा पर एक मोटी परत जम जाती है। सोरायसिस एक वंशानुगत बीमारी है लेकिन यह कई अन्य कारणों से भी हो सकता है।
 दूसरे शब्दों में कहें तो चमड़ी की सतही परत का अधिक बनना ही सोरायसिस है।
त्वचा पर सोरायसिस की बीमारी सामान्यतः हमारी त्वचा पर लाल रंग की सतह के रूप में उभरकर आती है और स्केल्प (सिर के बालों के पीछे) हाथ-पांव अथवा हाथ की हथेलियों, पांव के तलवों, कोहनी, घुटनों और पीठ पर अधिक होती है। हालांकि यह रोग केवल 1-2 प्रतिशत लोगों में ही पाया जाता है।
सोरायसिस को छालरोग भी कहा जाता है। इसमें त्वचा पर लाल दाग पड़ जाते हैं, कई बार इस रोग से पहले त्वचा पर बहुत अधिक खुजली होने लगती है। सोरायसिस की समस्या बहुत लोगों को होती है। एक आंकडे के मुताबिक दुनियाभर में लगभग 1 फीसदी लोग चर्मरोग या छालरोग से पीडि़त हैं। भारत में भी कुल जनसंख्या में से लगभग 1 फीसदी लोग सोरायसिस से पीडि़त हैं। हालांकि सोरायसिस का उपचार संभव है लेकिन इसके लिए जरूरी है कि इस रोग को बढ़ने से पहले ही उपचार किया जाए। ध्यान रहे यदि इसका ठीक से उपचार नहीं किया जाए तो आपको त्वचा संबंधी और भी कई समस्याएं हो सकती हैं।
  जैसे हमारे, नाखून, बाल इत्यादि बढ़ते हैं ठीक वैसे ही हमारी त्वचा में भी परिवर्तन होता है। जब हमारे शरीर में पूरी नयी त्वचा बनती है , तो उस दौरान शरीर के एक हिस्से में नई त्वचा 3-4 दिन में ही बदल जाती है। यानी सोरायसिस के दौरान त्वचा इतनी कमजोर और हल्की पड़ जाती है कि यह पूरी बनने से पहले ही खराब हो जाती है। इस कारण सोरायसिस की जगह पर लाल चकते और रक्त की बूंदे दिखाई पड़ने लगती है। हालांकि सोरायसिस कोई छूत की बीमारी नहीं है। यदि आपके खानपान में पौष्टिक तत्वों की कमी है और आप घी-तेल भी बिल्कुल ना के बराबर खाते हैं तो आपको यह रोग हो सकता है। सोरायसिस त्वचा पर मॉश्चराइजर ना लगाने, त्वचा को चिकनाहट और पर्याप्त नमी ना मिलने के कारण भी होता है। त्वचा की देखभाल ना करना, बहुत अधिक तेज धूप में बाहर रहना, सुबह की हल्की धूप का सेवन न कर पाना इत्यादि कारणों से सोरायसिस की समस्या होने लगती हैं। सोरायसिस के उपचार के लिए कुछ दवाईयां का सेवन किया जा सकता है लेकिन इससे निजात पाने के लिए आपको त्वचा की सही तरह से देखभाल करना जरूरी है l
*सोरायसिस के संकेत*
सोरायसिस रोग के लक्षणों को आप आराम से पहचान सकते हैं। जब आपकी त्वचा पर छिल्केदार, लाल-लाल पपडि़या सी जमने लगे तो यही रोग सोरायसिस है। इस रोग की पहचान है कि यह त्वचा के किसी एक हिस्से से शुरू होता है और बाद में बढ़कर फैल जाता है। आमतौर पर यह रोग कोहनी, घुटनों, कमर इत्यादि जगहों पर होता है। साथ ही मौसम के लगातार परिवर्तन से भी सोरायसिस होने लगता हैं और सर्दियों में सोरायसिस की समस्या अधिक बढ़ जाता है। सोरायसिस रोग का उपचार संभव है लेकिन इसको पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता। कई बार इस रोग से पीडि़त रोगी स्वंय ही ठीक हो जाते हैं। सोरायसिस का निदान भी संभव है लेकिन सबसे पहली उसकी पहचान होना और लक्षणों के बारे में जानकारी होना जरूरी है।
*सोरायसिस होने पर क्या करें*
सोरायसिस होने या इसकी आशंका भी होने पर विशेषज्ञ चिकित्सक को दिखाएं और उसके द्वारा बताए अनुसार निर्देशों का पालन करते हुए उपचार कराएं ताकि रोग नियंत्रण में रहे। थ्रोट इंफेक्शन से बचें और तनाव रहित रहें, क्योंकि थ्रोट इंफेक्शन और स्ट्रेस सीधे-सीधे सोरायसिस को प्रभावित कर रोग के लक्षणों में वृद्धि करता है। त्वचा को अधिक खुश्क होने से भी बचाएँ ताकि खुजली उत्पन्न न हो। सोरायसिस के उपचार में बाह्य प्रयोग के लिए एंटिसोरियेटिक क्रीम/ लोशन/ ऑइंटमेंट की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। रोग की तीव्रता न होने पर साधारणतः मॉइस्चराइजिंग क्रीम इत्यादि से ही रोग नियंत्रण में रहता है। लेकिन जब बाहरी उपचार से लाभ न हो तो मुंह से ली जाने वाली एंटीसोरिक आयुर्वेदिक और सिमटोमेटिक औषधियों का प्रयोग आवश्यक हो जाता है। आजकल पंचकर्म चिकित्सा एवं अल्ट्रावायलेट लाइट से उपचार की विधि भी अत्यधिक उपयोगी और लाभदायक हो रही है।

शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

1 - मात्रा पूर्वक आहार --

 मात्रा पूर्वक आहार से लाभ आयुर्वेद के अनुसार भोजन मात्रा पूर्वक करना चाहिए भोजन ना अधिक और ना ज्यादा कम करना चाहिए क्योंकि भोजन को अधिक मात्रा में खाने से त्रिदोष प्रकोप हो जाते हैं जिससे कई बीमारियां उत्पन्न होती है और मात्रा में कम भोजन करने से शरीर कमजोर हो जाता है इसी लिए पोस्टिक और ना ज्यादा और ना ज्यादा कम भोजन करें भोजन को हमेशा सम मात्रा में करें इससे आपकी आयु बहुत लंबी होगी और आपका जीवन निरोग रहेगा यह आयुर्वेद का नियम है।

2 - आहार जीर्ण होने पर करे भोजन ?

 पहले खाया हुआ खाना पच जाए उसके बाद ही भोजन करना चाहिए या जब हमें भूख लगे तब भोजन करना चाहिए अगर पहले खाए हुए खाना ना पचने और हम भोजन कर ले तो इससे मिश्रित भोजन सभी  सभी दोष पर कुपित कर अग्नि को बंद कर अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न करता है जैसे भोजन की इच्छा ना होना मल मूत्र त्याग करने में वेदना होना और शरीर की धातु की पुष्टि ना होना तथा गाया हुआ भजन कुछ भी लव नहीं करता इसीलिए भोजन के पास जाने पर ही खाना खाना चाहिए यह आपके जीवन को आरोग्य बनाए रखता है।

3 - आत्मा शक्ति के अनुसार आहार --

आत्मा शक्ति के अनुसार आहार लेने से लाभ अपनी आत्मा को भली प्रकार समझकर भोजन करना चाहिए क्योंकि अगर आप बिना अपनी आत्मा को समझाए भोजन करेंगे तो वह भोजन आपके लिए विरुद्ध होगा भोजन करने से पहले अपनी आत्मा को यह समझाना जरूरी है कि यह आहार द्रव्य मेरे लिए लाभ करें या मेरे लिए यह आहार द्रव्य हानिकारक है इस प्रकार से अपनी आत्मा को साथ में से विदित कराएं और अपनी आत्मा को भली-भांति समझा कर सुख से भोजन करें शीघ्र ही है भोजन बुद्धि वर्ण सर्वर और कांति को बढ़ाता है।