वेदों के अनुसार हिन्दू धर्म मे व आयुर्वेद में वर्णित एक व्यक्ति के जीवन काल मे अनेक अनुष्ठान किये जाते है। बच्चे के जन्म के बाद कुछ कर्म करने महत्वपूर्ण होते है।
बच्चे के जन्म के एक महीने के भीतर दो महत्वपूर्ण संस्कार सम्पन किये जाते है।इन संस्कारों के द्वारा बच्चे को स्वस्थ रखने के उपाय किये जाते है।इन संस्कारों को माता-पिता के माध्यम से उसके आध्यात्मिक मार्ग को प्रदर्शित कराते है।
संस्कारों का मुख्य उद्देश्य बच्चे को स्वस्थ व उसके जीवन को उत्तम भावो से भर कर उत्तम मूल्यों का समावेश करना है।
इसके लिए संस्कार, अनुष्ठान, पोषण किया जाता है।
क्योंकि की इस जगत में किसी भी जीव को जीवित रहने हेतु पोषण की आवश्यकता होती है । गर्भावस्था में बच्चा माता के गर्भ से ही जरूरी पोषण को ग्रहण करता है किंतु इस दुनिया मे आने के बाद उसे तुरंत पोषण की आवश्यकता होती है। बच्चे के एक महीने तक कि अवस्था अति महत्वपूर्ण है।इस अवस्था मे बच्चे को मिला पोषण उसके शरीर मे ऊर्जा,रोग प्रतिरोधक छमता,शक्ति, बुद्धि एवं दिर्घायु की प्राप्ति कर उसके जीवन को नया आयाम देता है।
हिंदू धर्म व आयुर्वेद(कौमारभृत्य) में वर्णित जो संस्कार है -
1-जातकर्म संस्कार
2-नामकरण संस्कार
बच्चे के जन्म के एक महीने के भीतर दो महत्वपूर्ण संस्कार सम्पन किये जाते है।इन संस्कारों के द्वारा बच्चे को स्वस्थ रखने के उपाय किये जाते है।इन संस्कारों को माता-पिता के माध्यम से उसके आध्यात्मिक मार्ग को प्रदर्शित कराते है।
संस्कारों का मुख्य उद्देश्य बच्चे को स्वस्थ व उसके जीवन को उत्तम भावो से भर कर उत्तम मूल्यों का समावेश करना है।
इसके लिए संस्कार, अनुष्ठान, पोषण किया जाता है।
क्योंकि की इस जगत में किसी भी जीव को जीवित रहने हेतु पोषण की आवश्यकता होती है । गर्भावस्था में बच्चा माता के गर्भ से ही जरूरी पोषण को ग्रहण करता है किंतु इस दुनिया मे आने के बाद उसे तुरंत पोषण की आवश्यकता होती है। बच्चे के एक महीने तक कि अवस्था अति महत्वपूर्ण है।इस अवस्था मे बच्चे को मिला पोषण उसके शरीर मे ऊर्जा,रोग प्रतिरोधक छमता,शक्ति, बुद्धि एवं दिर्घायु की प्राप्ति कर उसके जीवन को नया आयाम देता है।
हिंदू धर्म व आयुर्वेद(कौमारभृत्य) में वर्णित जो संस्कार है -
1-जातकर्म संस्कार
2-नामकरण संस्कार
जातकर्म
जातकर्म दो शब्दों से मिलकर बना है। जात ओर कर्म अथार्त जाति में होने वाले विशेष कर्म जिस वर्ण जाति का जो शास्त्र, वेद है उसमें लिखित मन्त्रो का पाठ करके पहले बालक को मधु(शहद) एवं घृत(घी गाय का) चटाते है उसके बाद इसी विधि से दक्षिण स्तन का दूध बालक को पिलाते है । उसके बाद मिट्टी के कलश में रखे हुए जल को मन्त्रो से सिद्ध कर बालक के सिर के पास रखा जाता है।
इसके अलावा कुछ आचार्य सबसे पहले मधु एवं स्वर्ण का प्रयोग इस कार्य के लिये किया है,जिससे बच्चे का पाचन तंत्र यह कार्य करे।इसके अलावा कुछ पोष्टिक तत्वों का सेवन भी बच्चे को कराया जाता है।
आचार्य चरक ने पहले दिन से ही मधु,घृत चटाने के बाद स्तनपान कराने के लिए कहा है।
जातकर्म संस्कार से बच्चे को क्या लाभ होता है।
1-बच्चे पर घी का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
Epithelisation को बढ़ावा देंता है। ,बच्चे के मुख को चिकना रखता है।,ऊर्जा को बढ़ाता है।,घाव भरने का गुण प्रदान करता है,
रोगाणुओं से लड़ने की शक्ति को बढ़ाता है और प्रतिरक्षा शक्ति को बढ़ाता है।
2-स्वर्ण सेवन का बच्चे पर प्रभाव-
-त्वचा की रंगत को निखरता है।
-आंखों को स्वस्थ बनाए रखता है।
-बच्चे बुद्धि ,स्मृति ,व लंबी उम्र प्रदान करता है।
नामकरण संस्कार
इस संस्कार का उद्देश्य है बालक को नाम देना। अक्षर एवं मनोवैज्ञानिक जानकरों का मानना है कि नाम का प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर गहराई से पड़ता है। बच्चे के नाम को सोच समझकर रखा जाय या बहुत जरूरी।बच्चे के भाव को जानकर बच्चे का नामकरण जन्म के दसवें या बारहवें दिन होना चाहिए।उसी दिन सूतिका का शुद्धिकरण किया जाता है।
बालक का नाम मे तीन पुस्त का अनुकरण करने वाला नाम हो। बालक का नाम ज्यादा बड़ा ना हो दो या चार अक्षर का नाम होना चाहिए। तथा नामकरन के समय बच्चे का भार,नाभि व प्रकृतीक कामला(पीलिया) का परीक्षण करना
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