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बुधवार, 17 जनवरी 2018

Healthy life according to ayurveda | आयुर्वेद के अनुसार स्वस्थ जीवन।

      आयुर्वेद के अनुसार स्वस्थ जीवन 

       ओ३म्


*कुछ उपयोगी बातें*


*(1)* वेद में कहा है:-

*अभ्यञ्जनं सुरभि सा समृद्धिः।-(अथर्व० ६/१२४/३)*

तैल मालिश करना,अंजन=सुरमा लगाना तथा सुगन्धित द्रव्यों का प्रयोग करना समृद्धि का कारण है।

सुश्रुत के चिकित्सा -स्थान में लिखा है-
*जलसिक्तस्य वर्द्धन्ते यथा मूलेंऽकुरास्तरोः।*
*तथा धातुविवृद्धिर्हि स्नेहसिक्तस्य जायते ।।*

*अर्थ:-*जैसे वृक्ष की जड़ में पानी देने से उसके डाली और पत्तों के अंकुर बढ़ते हैं तथा वृक्ष पुष्ट हो जाता है ,इसी प्रकार तेल मालिश से रस,रक्त,माँस आदि धातुओं की वृद्धि होकर मनुष्य का शरीर पुष्ट और सुन्दर हो जाता है।

*(2)* महर्षि चरक ने स्नान के निम्न लाभ बतलाये हैं:-
*पवित्रं वृष्यमायुष्यं श्रमस्वेदमलापहम् ।*
*शरीरबलसंधानं स्नानमोजस्करं परम् ।।-(चरक सूत्र० ५/९२)*

*अर्थ:-*स्नान करना शरीर को पवित्र करता है,आयु को बढ़ाता है,थकावट तथा पसीने और मैल को दूर करता है,शारीरिक बल को बढ़ाता है और ओज उत्पन्न करता है।

स्नान सदैव ठंड़े जल से ही करना चाहिये।बहुत विवश होने पर ही गर्म जल का उपयोग करना चाहिये।सिर पर तो प्रत्येक दशा में शीतल जल ही डालना चाहिये।

महर्षि बाग्भट्ट ने स्पष्ट बताया है कि -
"गर्म जल से सिर धोने से नेत्रों की ज्योति कम हो जाती है,केश निर्बल हो जाते हैं और मष्तिष्क को बहुत हानि पहुँचती है।"

स्नान के सम्बन्ध में महर्षि मनु के इस आदेश को सदा स्मरण रखना चाहिये-
*न स्नानमाचरेद् भुक्त्वा नातुरो न महानिशि।*
*न वासोभिः सहाजस्रं नाविज्ञाते जलाशये ।।-(मनु० ४/१२९)*

*अर्थ:-*भोजन करके,रुग्ण अवस्था में(बिमारी में),मध्यरात्रि में,कपड़ों के साथ और अविज्ञात(जिसके विषय में कुछ ज्ञान न हो),ऐसे जलाशय में स्नान नहीं करना चाहिये।

*(3)* 'चरक संहिता' में लिखा है कि नेत्रों के लिए किसी उत्तम सुर्मे का प्रतिदिन प्रयोग करना चाहिये।(मुरारी ब्रदर्स,कमला नगर,दिल्ली द्वारा निर्मित 'भीमसेनी काजल' और 'नाग ज्योति' सुर्मा आंखों के लिए बहुत लाभदायक है।)

*(4) व्यायाम:-*महर्षि चरक ने व्यायाम के गुणों का वर्णन करते हुए लिखा है:-
*लाघवं कर्मसामर्थ्यं स्थैर्यं क्लेशसहिष्णुता ।*
*दोषक्षयोऽग्निवृद्धिश्च व्यायामादुपजायते ।।-(चरक सूत्र० ७/३२)*

*अर्थ:-*व्यायाम से शरीर में हल्कापन,कर्म करने का सामर्थ्य ,स्थिरता और क्लेश सहने की शक्ति बढ़ती है; शरीर के दोषों का नाश होता है और जठराग्नि की वृद्धि होती है।

'भाव प्रकाश' में कहा है:-

*व्यायाम दृढगात्रस्य व्याधिर्नास्ति कदाचन ।*
*विरुद्धं वा विदग्धं वा भुक्तं शीघ्रं विपच्यते ।।*

*अर्थात्―*व्यायाम के द्वारा शरीर के सुदृढ़ होने से कोई रोग नहीं होता।शरीर रोग-प्रूफ बन जाता है।व्यायामी मनुष्य को विरुद्ध अन्न,अर्थात् अच्छी प्रकार न पचने वाला अन्न भी शीघ्र पच जाता है।

यौगिक व्यायाम में दोहरा लाभ है।एक और आसनों से शरीर बलिष्ठ व रोगरहित बनता है तो दूसरी और आत्मिक उन्नति भी होती है।

*(5) भोजन:-*भोजन के साथ जल पीने के सम्बन्ध में आयुर्वेद के ग्रन्थों में लिखा है:-

*अत्यम्बुपानान्न विपच्यतऽन्नमनम्बुपानाच्च स एव दोषः ।*
*तक्ष्मान्नरो वह्यिविवर्धनाय मुहुर्मुहुर्वारिपिबेदभूरि ।।-(भावप्रकाश)*

*अर्थ:-*भोजन करते हुए बहुत अधिक जल पीने से अन्न नहीं पचता और बिल्कुल जल न पीने से भी भोजन का ठीक पाक नहीं होता।जठराग्नि को प्रदीप्त रखने के लिए मनुष्य को (भोजन के बीच में) बार-बार थोड़ा-२ जल पीना चाहिये।

*(6) मूत्रं नोत्तिष्ठिता कार्यम् ।-(महा० अनु० १०४)*
खड़े होकर पेशाब नहीं करना चाहिये।
नोट-अटैक के कारणों में एक बड़ा कारण खड़े होकर पेशाब करना है।

*(7) न नक्तं दधि भुञ्जीत ।-(चरक० सूत्र० ८/२०)*
रात्रि में दहीं नहीं खानी चाहिये।

*(8) आर्द्रपादस्तु भुञ्जानो वर्षाणां जीवते शतम् ।-(महाभारत अनु० १०४/६२)*

पैरों को भिगोकर (पैर धोकर) भोजन करने वाला मनुष्य सौ वर्ष तक जीवित रहता है।(अतः पैर धोकर भोजन करना चाहिये) ।

*(9) न जातु त्वमिति ब्रूयादापन्नोऽपि महत्तरम् ।*
*त्वंकारो वा वधं वेति विद्वत्सु न विशिष्यते।।-(महाभारत अनु० १६२/५२)*

*अर्थ:-*बड़े से बड़ा संकट पड़ने पर भी वृद्ध पुरुषों के प्रति 'तू' या 'तुम' शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिये।किसी को 'तू' कहकर पुकारना अथवा उसका वध कर देना-इन दोनों बातों में विद्वान लोग कोई अंतर नहीं समझते।

*(10) उदक्शिरा न स्वपेत तथा प्रत्यक्शिरा न च ।*
*प्राक्शिरस्तु स्वपेद्विद्वानथवा दक्षिणाशिराः ।।-(महाभारत अनु० १०४/४८)*

*अर्थ:-*उत्तर और पश्चिम की और सिर करके न सोये।विद्वान मनुष्य को पूर्व या दक्षिण की और सिर करके सोना चाहिये।(ऐसा करने से आयु बढ़ती है)

*(11) षड् दोषा पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता ।*
*निन्द्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता ।।-(विदुरनी० १/८३)*

ऐश्वर्य चाहने वाले मनुष्य को इस संसार में निम्न छह दोष छोड़ देने चाहिये-
१.बहुत अधिक सोना,२.ऊँघते रहना,३.भयभीत होना,४.क्रोध करना,५.आलस्य ,और ६.कार्यों को देरी से करना,एक घण्टे के कार्य में चार घण्टे लगाना।

(12) रात्रि में सदैव बायीं करवट सोना चाहिये।इससे आयु बढ़ती है।



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